इंद्र कौन है क्यों नहीं की जाती इंद्र की पूजा
माना जाता है की इंद्र किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं अपितु यह एक पथ का नाम है और दूसरा यह एक बादल का नाम है यह एक समय की अवधि का भी नाम है इंद्र को सुरेश, देवेंद्र देवेश, सचीपति, सुरपति, सकरा ,सरांधेर ,देवराज के नाम से भी जाना जाता है इंद्रा के कारण ही इंद्रा धनुष इंद्र जल इन्द्रिय जैसे शब्दों की उत्पत्ति हुई इंद्रा को देवताओ का अधिपति माना गया है इंद्रा को उनके छल के कारण अधिक जाना जाता है वैदिक समाज जहा देवताओ की स्तुति करता था वही प्राकृतिक शक्तियों की भी स्तुति करता था और वह मानता था की प्राकृतिक में हर तत्व पर एक देवता का शासन है उसी तरह वर्षा या बादलो के देवता इंद्र है तो जल समुन्द्र नदी के देवता वरुण है समुन्द्र मंथन से जो १४ रतन प्राप्त हुए उसमे एक ऐरावत भी था रत्नो के बटवारे के समय इंद्र ने अत्यंत सूंदर और दिव्य गुणों वाले ऐरावत हाथी को अपने लिए रख लिया ऐरावत चमकता हुआ स्वेत हिरणकाय हाथी था अब तक १४ इंद्र हुए है स्वर्ग पर राज करने वाले १४ इंद्र माने गए है कहा जाता है की एक इंद्र रिषद के समान था असुरो के राजा बलि भी इंद्र बन चुके है और रावण के पुत्र मेघनाद ने भी इंद्र पद हासिल कर लिया था हिन्दू धरम में इंद्र की पूजा नहीं की जाती भगवन कृष्ण से पहले उत्तर भारत में इंद्र उत्सव नामक बहुत बड़ा त्यौहार होता था भगवान कृष्ण ने इंद्र की पूजा बंद करवाकर गोपोत्सव, रंगपंचमी और होली का उत्सव करना शुरू किया श्री कृष्ण का मानना था की ऐसे किसी व्यक्ति की पूजा नहीं करनी चाहिए जो की न ईश्वर हो और न ईश्वर के समान अतुल्य हो गाय की पूजा इसलिए क्योंकि इसी के माद्यम से हमारा जीवन चलता है होली उत्सव इसलिए क्योंकि यह सत्य की असत्य पर जीत है रंगपंचमी जीवन को रंग एवं खुसियो से भरना का त्यौहार है श्री कृष्ण का माना था की हमारे आस पास जो भी चीजे है हम उनसे बहुत प्रेम करते है जैसे गाये पेड़ गोवर्धन पर्वत फल मूल एवं शीतल जल श्री कृष्ण के शब्दों में यह सब हमारी जिंदगी है ये ही लोग यह ही जानवर और यह ही पेड़ तो है जो हमेसा हमारे साथ है और हमारा पालन पोसन करते है इन्ही की वजह से हमारी जिंदगी है ऐसे में हम किसी ऐसे देवता की पूजा क्यों करे जो हमे भय दिखता है मुझें किसी देवता का डर नहीं अगर हमे चढ़ावे और पूजन का आयोजन करना है है तो हम कपोत्सव मनाएंगे इंद्र उत्सव नहीं

0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home